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वास्तु के अनुसार भवन निर्माण (Vastu for House Construction)

वास्तु के अनुसार भवन निर्माण

वास्तु कम्पास से घर की सही दिशा का पता लगाने का तरीका

घर या किसी भी भूखंड को लेते वक्त सबसे अहम हो जाता है उसकी सही दिशा का पता लगाना। एक बार सही दिशा का पता लग जाए उसी के बाद वास्तु के सिद्धांतों को लागू किया जा सकता है। हालाँकि अक्सर ऐसा देखा जाता है की लोग सही जानकारी के अभाव में उनके भूखंड की दिशा अच्छे से नहीं जान पाते है और किसी प्लॉट के पूर्व मुखी, उत्तर मुखी, पश्चिम मुखी या दक्षिण मुखी होने का अनुमान लगा लेते है जो कि सही नहीं है।

इसके दो कारण है कि पहला तो सभी भूखंड या प्लॉट बिलकुल सटीक किसी दिशा विशेष में नहीं होते है। वे कुछ ना कुछ डिग्रीज घुमे हुए होते है और ये कुछ डिग्री पूरे घर का नक्शा बदल देते है। संभव है कि आप अपने एक अनुमान से अपने घर का मुख्य प्रवेश पूर्व दिशा के चौथे द्वार ‘इंद्र’ (वास्तु के 32 द्वारों में से एक) पर रखना चाहते हो जो की एक शुभ द्वार है लेकिन भूखंड अगर कुछ डिग्री घुमा हुआ हो तो वो आपका मुख्य प्रवेश स्थान पूर्व के चौथे द्वार से खिसककर पांचवे द्वार ‘सूर्य’ पर जा सकता है जो की घर के मुख्य प्रवेश स्थान के लिए शुभ नहीं है। इसलिए कुछ डिग्री का अंतर जाने-अनजाने में ही नक़्शे में बड़ा बदलाव ला सकता है।

वही दूसरा कारण है कि जानकारी के अभाव में लोग सिर्फ चार दिशाओं (उत्तर, दक्षिण, पूर्व, पश्चिम) को ही मुख्य मानकर चलते है और बाकि की दिशाओं (ईशान, आग्नेय, नैर्रित्य, वायव्य) को नजरंदाज़ कर देते है। फलस्वरूप आपको पता भी नहीं होगा और आप एक गलत निर्णय ले चुके होंगे। इसीलिए ये जरुरी हो जाता है की आप किसी भी प्लॉट या भूखंड को खरीदते समय ठीक तरीके से दिशाओं की जाँच परख करके अंतिम निर्णय ले। तो आइये जानते है की आखिर वास्तु में दिशाओ का पता कैसे लगाया जाता है –

हम आपको इस लेख में बताएँगे कि-

1. घर की सही दिशा पहचानने का तरीका।

2. चार मुख्य दिशाओं के अलावा चार अन्य दिशाओं को जानने की तकनीक।

3. ईशान कोण का वास्तु में इतना महत्व क्यों है।

4. आग्नेय कोण का प्रभाव और वास्तु के सिद्धांत।

5. नैऋत्य कोण के बारे में वास्तु शास्त्र क्या कहता है।

6. वायव्य कोण की अहमियत।

घर या किसी भूखंड की सही दिशा पहचानने का तरीका –

सबसे पहले एक कंपास ले, और अगर आपके पास कंपास नहीं है तो अपने मोबाइल पर कंपास से सम्बंधित एप डाउनलोड कर ले।  

1. अब आप घर के मुख्य द्वार पर बाहर की तरफ मुंह करके खड़े हो जाइए। अब कंपास में ठीक सामने जो दिशा दिख रही है और जितने डिग्री पर दिख रही है उसे नोट कर ले|

2. अगला कदम होगा जो दिशा आपने नोट करी है उसे सुनिश्चित करने का। इसके लिए आप कंपास में जहाँ पर उत्तर दिशा दिख रही है उसे उस कंपास के सुई से मिलाये और फिर अपना हाथ 90 डिग्री में घुमा के सीधा कर ले। अगर उस घर की किसी दीवार पर कम्पास का उत्तर दिशा का निशान और उसकी सुई बिलकुल सटीक मिल रही है तो ठीक है और अगर ऐसा नहीं है तो जितने डिग्री दिशा घूमी हुई है उसे नोट कर ले। 

तो इस प्रकार पहले स्टेप से आपको घर की दिशा का ज्ञान हो जायेगा लेकिन अगर घर कुछ डिग्री घुमा हुआ है तो दुसरे स्टेप से आपको वो दिशा कितनी घूमी हुई है इसकी जानकारी मिल जायेगी और घर की सही दिशा बड़ी ही सटीकता से सुनिश्चित हो पाएगी।

चार मुख्य दिशाओं के अलावा चार अन्य दिशाओं को जानने की तकनीक 

आपमें से अधिकांश लोगो को मात्र चार दिशाओं की जानकारी ही होगी यानि की –

उत्तर, दक्षिण और पूर्व, पश्चिम। लेकिन वास्तु शास्त्र के अनुसार चार बहुत ही महत्वपूर्ण अन्य दिशाए भी होती है –

  1. ईशान (उत्तर और पूर्व के बीच की दिशा)
  2. आग्नेय (दक्षिण और पूर्व के बीच की दिशा)
  3. नैऋत्य (दक्षिण और पश्चिम के बीच की दिशा)
  4. वायव्य (उत्तर और पश्चिम के बीच की दिशा)

अब जब आपने कंपास की सहायता से मुख्य दिशाएं पता लगा ली है तो अन्य दिशाओं को ढूँढना और भी आसान हो जाता है। आपको इसके लिए सिर्फ दो मुख्य दिशाओं के ठीक बीच की जगह (डिग्री) ढूँढनी है।

जैसा की आप इस चित्र में देख सकते है। ईशान, आग्नेय, नैऋत्य और वायव्य चारों ही दिशाएं अन्य मुख्य दिशाओ के ठीक बीच का एक बिंदु है।

इस प्रकार आप देख सकते है की वास्तु के अनुसार कुल मिलाकर आठ दिशाएं होती है। एक वास्तु सम्मत घर के निर्माण के लिए ये बहुत आवश्यक हो जाता है की आठों दिशाओं की आपके भूखंड के अनुसार सही स्थिति पता हो। इनमे से ईशान, आग्नेय, नैऋत्य और वायव्य दिशाएं वास्तु में चार मुख्य दिशाओं जितना ही महत्व रखती है। तो आइये जानते है कि इन चारों दिशाओं का क्या महत्व है –

1. ईशान कोण का वास्तु में इतना महत्व क्यों है ?

ईशान कोण उत्तर दिशा और पूर्व दिशा के ठीक बीच में स्थित होता है। ईशान कोण के अतिशुभ प्रभावों का अध्ययन करने के बाद इसे प्रतीकात्मक रूप से ईश्वर का स्थान माना गया है। इस दिशा में गुरु ग्रह के प्रभाव को देखते हुए इसे गुरु ग्रह से शासित माना गया है। ईशान कोण में जल तत्त्व प्रभावी होता है इसलिए यहाँ पर अंडरग्राउंड वाटर टैंक बनाया जा सकता है (ओवरहेड वाटर टैंक नहीं ), अन्यथा इस स्थान को घर में खुला छोड़ना बेहद शुभ होता है।

2.आग्नेय कोण का प्रभाव और वास्तु के सिद्धांत - 

आग्नेय कोण दक्षिण और पूर्व दिशा के मध्य में स्थित होता है। इस दिशा को शुक्र ग्रह से प्रभावित होने के चलते शुक्र ग्रह से शासित माना गया है। जैसा की इसके नाम से जाहिर होता है इस स्थान का तत्त्व अग्नि है। इसलिए घर में अग्नि से सम्बंधित सभी वस्तुएं इसी दिशा में रखना लाभदायक होता है। रसोई के लिए घर में, होटल में या अन्य किसी भी स्थान पर सबसे उत्तम जगह आग्नेय कोण ही होता है।

3. नैऋत्य कोण के बारे में वास्तु शास्त्र क्या कहता है ?

नैऋत्य कोण दक्षिण और पश्चिम दिशा जिस बिंदु पर आकर मिलती है ठीक वही पर विद्यमान होता है। इसे दक्षिण-पश्चिम दिशा के रूप में भी जाना जाता है। यह Earth Element यानि की पृथ्वी तत्त्व और राहु ग्रह से शासित जगह है। इस स्थान पर सोने से व्यक्ति में स्थिरता और प्रबलता का गुण आता है। इसीलिए घर का मास्टर बेडरूम बनाने के नैऋत्य कोण सर्वोतम है।

4. वायव्य कोण की अहमियत –

वायव्य कोण उत्तर और पश्चिम दिशा के बिलकुल बीच में स्थित एक दिशा है। इसका प्रमुख तत्व ‘वायु’ है जैसा की इसके नाम से पता चलता है। इसके अलावा वायव्य कोण ‘चन्द्रमा’ से शासित दिशा है। इस दिशा में लिविंग रूम, किचन के अलावा बेडरूम भी बनाया जा सकता है।

तो इस प्रकार आपने जाना की किस तरह से आपके घर की सही दिशा का पता लगे जा सकता है। साथ ही आपको इन दिशाओं के महत्व बारे में संक्षिप्त में समझाया गया। उम्मीद है ये जानकारी आपके काम आएगी।

वास्तु के अनुसार भवन निर्माण के वक्त क्या करे और क्या ना करे ?

वास्तु शास्त्र के अनुसार भूखंड खरीदने से लेकर उसे बनाने तक कई तरह की सावधानियां बरतनी आवश्यक है। निम्नलिखित बातें भवन निर्माण के दौरान आपके लिए शुभ और अशुभ साबित हो सकती है -   

  1. प्लाट की दिशा

उत्तरमुखी व पूर्वमुखी दिशा वाले प्लाट बेहतर होते हैं क्योंकि इन पर वास्तु के अनुसार गृह निर्माण करना अन्य दिशाओं की अपेक्षाकृत अधिक आसान होता है। हालाँकि इसका मतलब यह नहीं होता है कि दक्षिणमुखी या पश्चिम मुखी प्लाट अशुभ होते है। बल्कि वास्तु केस स्टडीज में यह बडे पैमाने पर देखा गया है कि अगर दक्षिण या पश्चिम मुखी मकानों का निर्माण वास्तु सम्मत तरीके से किया गया हो तो इस प्रकार के मकान बेहद आर्थिक सम्पन्नता प्रदान करे वाले होते है। 

लेकिन फिर भीदक्षिणमुखी व पश्चिममुखी भूखंड गृह निर्माण के लिए प्रथम विकल्प नहीं होते है क्योंकि इन पर घर बनाते वक्त वास्तु दोष रह जाने की आशंका अधिक होती है। हालाँकि इस बात में कोई दो राय नहीं है कि अगर दक्षिणमुखी व पश्चिममुखी घर भी वास्तु के अनुसार बनाये जाए तो ये भी अन्य दिशाओं के समान ही बहुत शुभ फल प्रदान करने वाले और लाभदायक सिद्ध होते है।

  1. प्लाट का आकार

शुभ -वर्गाकार प्लाट सबसे शुभ होता है। आयताकार प्लाट भी ठीक होता है, हालाँकि लम्बाई-चौड़ाई का अनुपात 1:2 से अधिक नहीं होना चाहिए)। प्लाट हमेशा बड़ा होना चाहिए, तभी उसे पूर्णरूप से वास्तु सम्मत बनाया जा सकता है।

अशुभ - त्रिभुजाकार, वृताकार, त्रिशुलाकार,   कटा हुआ, बढ़ा हुआ या छोटा प्लाट भूस्वामी और उसके परिवार के लिए अच्छा नहीं होता है। (अपवाद – केवल उत्तर-पूर्व दिशा यानि की ईशान का बढ़ा होना काफी शुभ होता है, लेकिन अन्य कोई भी दिशा बढ़ी हुई नहीं होनी चाहिए)

  1. प्लाट का ढलान

शुभ -उत्तर व पूर्व दिशा की और प्लाट का ढलान बेहद शुभ होता है। भवन निर्मित करवाते समय सदैव ही जल का बहाव उत्तर व पूर्व दिशा की और ही रखना चाहिए। यह स्वास्थ्य के लिए भी शुभ होता है तो वही इस प्रकार का ढलान धनलाभ भी कराता है।

अशुभ -दक्षिण दिशा या पश्चिम दिशा का ढलान इतना शुभ नहीं माना जाता है। दक्षिण दिशा में ढलान होना जहाँ गृहस्वामी और घर की स्त्रियों के लिए हानिकारक होता है तो वही पश्चिम दिशा में ढलान गृहस्वामी और घर के पुरुषों के लिए अशुभ होता है।

  1. निर्मित स्थान व खाली स्थान का अनुपात

शुभ -किसी भूखंड पर पर ’निर्मित भाग’ से अधिक लाभ उस पर स्थित ‘खाली भूभाग’ से प्राप्त होता है। वास्तु के नियमो के अनुसार किसी भी प्लाट या भूभाग पर 60 प्रतिशत या उससे कम भाग पर निर्माण होना चाहिए। अगर आप को अधिक निर्माण करवाना हो तो आप ग्राउंडफ्लोर की अपेक्षा पहली मंजिल पर निर्माण करवाए तो ज्यादा बेहतर होगा। भूभाग पर निर्माण दक्षिण पश्चिम दिशा में होना चाहिए।

अशुभ -उत्तर व पूर्व दिशा में किया गया निर्माण अशुभ होता है। क्योंकि इस स्थान पर निर्माण करने से जहा आप को अशुभ फल तो मिलते ही है वही इस स्थान से मिलने वाले शुभ फलो की भी प्राप्ति नहीं होती है। इसलिए उत्तर-पूर्व खाली छोड़ना चाहिए व दक्षिण-पश्चिम में निर्माण होना चाहिए।

  1. भूखंड के आसपास का वातावरण

शुभ -उत्तर-पूर्व में किसी शुद्ध जलाशय (नदी, झील, तालाब, इत्यादि) की मौजूदगी, दक्षिण-पश्चिम में बड़े टीले, ऊँची इमारत, या अन्य कोई भारी व ऊँचा निर्माण का होना अच्छे फल प्रदान करता है।

अशुभ -दक्षिण-पश्चिम दिशा में जलाशय की मौजूदगी, किसी प्रकार का गड्ढा विनाशकारी साबित होता है। भूखंड के आसपास शमशान की अवस्थिति, कचरे का ढेर, या अन्य कोई नकारात्मक निर्माण अशुभ होता है। इसके अतिरिक्त प्लाट का तीन तरफ से बहुत ऊँची इमारतो से घिरा होना भी अच्छे परिणाम नहीं देता है।

  1. रास्ता या सड़क

शुभ -किसी भी दिशा के सामने से निकलने वाली सड़क उस दिशा के गुण या अवगुण बढ़ा देती है। जैसे की उत्तर दिशा के सामने से निकलने वाली सड़क काफी शुभ होती है। यह गृहस्वामी को मिलने वाले लाभ में वृद्धि कर देती है। इसके अलावा एक और विशेष बात का ध्यान का ध्यान रखा जाना चाहिए कि जहाँ पर आपका भूखंड लेने का विचार हो उस स्थान पर सड़क की चौड़ाई कम से कम 30 फीट होनी चाहिए।

अशुभ -दक्षिण मुखी या पश्चिम मुखी भूखंड के सामने से निकलने वाली सड़क अशुभ होती है क्योंकि ऐसा होने पर ये उस दिशा के नकारात्मकता में इजाफा कर देती है। अतः ऐसा भूखंड लेने से बचे जिसमे दक्षिण या पश्चिम दिशा के सामने से मार्ग प्रहार हो रहा हो। 30 फीट से कम चौड़ी रोड पर घर लेने से बचे तो बेहतर होगा।

  1. मेन डोर

शुभ -वास्तु में किसी भी भूखंड का विभाजन 32 बराबर भागो या पदों में किया जाता है। इन पदों को  अलग-अलग नाम से जाना जाता है। इन्ही 32 भागो में से 8 भाग ऐसे है जिनमे घर का मुख्य द्वार बनाना बेहद शुभ परिणाम लाता है। वो 8 भाग इस प्रकार है -

उत्तर में मुख्य, भल्लाट और सोम

पूर्व में जयंता और इंद्रा

दक्षिण में गृहरक्षिता

पश्चिम में पुष्पदंता और वरुण

अशुभ -उपरोक्त वर्णित 8 भागो के अलावा शेष बचे अन्य भागों में मुख्य द्वार बनाना नकारात्मक उर्जा को घर में प्रविष्ट कराता है। इनमे भी कुछ द्वार ऐसे है जिनमे किसी भी हालत में मुख्य द्वार नहीं होना चाहिए। जैसे कि नैऋत्य (दक्षिण-पश्चिम) में स्थित मुख्य द्वार घर के सदस्यों को बहुत गंभीर परिणाम प्रदान करता है। मुख्य द्वार का वास्तु में बहुत महत्त्व है इसलिए इस द्वार को सही जगह पर बनाने के लिए वास्तु शास्त्र के नियमों का पुर्णतः पालन किया जाना अतिआवश्यक है। 

  1. मास्टर बेडरूम

शुभ -मास्टर बेडरूम के लिए नैऋत्य कोण (दक्षिण-पश्चिम) सर्वश्रेष्ठ है।पृथ्वी तत्त्व(Earth element) की उपस्थिति के कारण दक्षिण-पश्चिम में सोने वाले व्यक्ति में स्थायित्व के साथ ही प्रबलता (Dominance) के गुण भी आ जाते है। परिणामतः इससे गृहस्वामी के जीवन में स्थिरता भी आएगी और उसकी कही बात में वजन भी आएगा जिससे घर के अन्य सदस्य भी उसकी बात मानेंगे। इसलिए घर में मुख्य कमाऊ व्यक्ति (ना कि उम्र में सबसे बड़े) को इसी कमरे में सोना चाहिए।

अशुभ -ईशान कोण (उत्तर-पूर्व दिशा) में सोना पुरुषों को कमजोर बनाता है और महिलाओं के स्वास्थ्य पर भी विपरीत असर डालता है। इसलिए इसे मास्टर बेडरूम या परिवार के अन्य किसी भी सदस्य के लिए बेडरूम के लिए प्रयुक्त नहीं करना चाहिए। इसके अलावा पश्चिमी वायव्य, उत्तर दिशा, पूर्वी आग्नेय और दक्षिणी आग्नेय भी मास्टर बेडरूम के लिए उपयुक्त स्थान नहीं है।

  1. किचन

शुभ -आग्नेय तत्त्व की उपस्थिति के चलते किचन हमेशा आग्नेय कोण (दक्षिण-पूर्व) में बनायीं जानी चाहिए। किचन के लिए दूसरा विकल्प वायव्य दिशा (उत्तर-पश्चिम) है।

अशुभ -ईशान में किचन वास्तु के सिद्धांतो में पूर्णतः वर्जित है। इसके अलावा अन्य दिशाओं में भी रसोई का निर्माण करना नकारात्मक प्रभाव प्रदान करता है।

  1. गार्डन

शुभ -  उत्तर दिशा व पूर्व दिशा गार्डन के लिए बहुत ही लाभकारी होती है। इन दिशाओं में जितना ज्यादा खुला स्थान होगा उतना ही ज्यादा फायदेमंद होगा। यह धनलाभ और स्वास्थ्य के लिए बहुत शुभ होता है।

अशुभ -दक्षिण दिशा व पश्चिम में उत्तर व पूर्व दिशा की अपेक्षा गार्डन या ज्यादा खुला स्थान नहीं होना चाहिए। इस दिशाओं में अधिक खुला स्थान घर में नकारात्मक उर्जाओं को प्रवेश देता है जो कि घर के लोगों के लिए दुष्परिणाम लाती है।

  1. अंडरग्राउंड वाटरटैंक

शुभ -ईशान में अंडरग्राउंड टैंक बनाना ईशान दिशा के गुणों में और भी वृद्धि कर देता है और घर में स्वास्थ्य व सम्रद्धि के लिए अति लाभदायक होता है। पूर्व दिशा भी इसके लिए उपयुक्त है।

अशुभ - घर में दो स्थान ऐसे होते है जहाँ अंडरग्राउंड वाटरटैंक या किसी भी प्रकार  के भूमिगत जलाशय का होना अत्यंत विनाशकारी होता है। इनमे पहला स्थान है नैऋत्य दिशा व दूसरा स्थान है ब्रह्मस्थान। ऐसे भवन में किसी भी हालत में नहीं निवास नहीं करना चाहिए जहाँ पर इन दोनों स्थानों में से किसी में भी अंडरग्राउंड वाटरटैंक या भूमिगत जलाशय उपस्थित हो।

  1. टॉयलेट

शुभ -दक्षिणी नैऋत्य, पश्चिमी वायव्य, पूर्वी आग्नेय टॉयलेट बनाने के लिए उपयुक्त स्थान है।

अशुभ -उत्तर दिशा में टॉयलेट के लिए कोई भी स्थान बेहद नुकसानदायक होता है। वही अन्य दिशाओं में भी आपको बताये गए तीन स्थानों के अलावा किसी और जगह पर टॉयलेट का निर्माण स्वास्थ्य और आर्थिक समस्याओं को निमंत्रण देता है।

  1. सीढियां

शुभ - दक्षिण व पश्चिम दिशा में अंदर की तरफ सीढियां बनायीं जा सकती है और नैऋत्य व पूर्वी आग्नेय में बाहर की ओर सीढियां बनाई जा सकती है। वही वायव्य में अंदर व बाहर दोनों ही तरफ सीढ़ियों का निर्माण किया जा सकता है।

अशुभ -किसी भी तरह का भार उत्तर-पूर्व (ईशान) दिशा में दोष ला देता है। सीढ़ियों का निर्माण भी इस दिशा को भारी कर देता है अतः ईशान में सीढ़ियों का निर्माण नहीं करना चाहिए। साथ ही ब्रह्मस्थान भी सीढ़ियां बनाने के लिए निषिद्ध है।

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Engineer Rameshwar Prasad

(B.Tech., M.Tech., P.G.D.C.A., P.G.D.M.)

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